रांची
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झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन से सीएम हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री कैंडिडेट होंगे
.
यह लगभग तय है
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बीजेपी की तस्वीर साफ नहीं है
,
लेकिन इतना तय है कि बीजेपी का भी सीएम कैंडिडेट आदिवासी ही होगा
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बीजेपी किसी पूर्व मुख्यमंत्री पर ही दांव खेलेगी और यह भी तय है कि मुख्यमंत्री कैंडिडेट आयातित होगा
.
वह आयातित नेता प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी
,
पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा या चंपई सोरेन हो सकते हैं
.
पिछले कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पैर्टन पर नजर डालें तो इस अनुमान को बल मिलता है
.
पिछले कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने कई राज्यों में या तो अपना मुख्यमंत्री बदल दिया है या फिर विपक्ष के बड़े नेताओं को अपने पाले में करके अपने फ्रंट लाइन के नेताओं को पीछे डाल दिया है
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चुनाव से पहले हरियाणा
,
गुजरात
,
कर्नाटक
,
उत्तराखंड और त्रिपुरा में सीएम बदले गये
,
जबकि बंगाल में शुभेंदु अधिकारी
,
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह
,
एमपी एम ज्योतिरादित्य सिंधिया और असम में हेमंता बिस्वा सरमा जैसे बड़े विपक्षी नेताओं को बीजेपी लाकर इन्हें आगे कर पार्टी के नेताओं को पीछे कर दिया गया
.
कुछ इसी तरह चुनाव से पहले झारखंड बीजेपी में चंपई सोरेन की एंट्री हुई है
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शिवराज सिंह चौहान और हेमंता बिस्वा सरमा के साथ पार्टी के अन्य बड़े नेताओं के बयान से यह लग रहा है कि बीजेपी झारखंड में भी इसी पैटर्न पर चलेगी
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बीजेपी के सामने तीन विकल्प
बीजेपी अगर चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री कैंडिडेट बनाती है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी
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बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा ने जिस तरह से लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन से केंद्रीय नेतृत्व को निराश किया है
.
ऐसे में उनको दरकिनार कर चंपई को आगे किया जा सकता है
.
बाबूलाल मरांडी लोकसभा चुनाव में राज्य के
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आदिवासी सुरक्षित सीट में से एक भी बीजेपी को नहीं दिला पाये
.
दूसरी तरफ अर्जुन मुंडा केंद्रीय मंत्री रहते खूंटी लोकसभा सीट से बुरी तरह हार गये
.
इससे साफ है कि इन दोनों नेताओं की पकड़ आदिवासी समुदाय पर कमजोर हो चुकी है
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ऐसे में तीसरे विकल्प के रुप में बीजेपी के सामने चंपई सोरेन हैं
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चंपई सोरेन कोल्हान टाइगर के नाम से जाने जाते हैं
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सरायकेला विधानसभा सीट से लगातार चुनाव जीतकर उन्होंने साबित किया है कि जनता में उनकी पकड़ है
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चंपई की आंदोलनकारी नेता की छवि होने के कारण बीजेपी हेमंत सोरेन को मात देने के लिए चंपई को उनके सामने खड़ा करने की कोशिश करेगी
.
इस बार झारखंड से दूर रहेंगे बीजेपी के बड़े रणनीतिकार
झारखंड में बीजेपी के पास फ्रंट लाइन में बाबूलाल
,
अर्जुन मुंडा और चंपई सोरेन के अलावा
एक और लीडर रघुवर दास हैं
.
रघुवर दास ने अपने कुशल कूटनीति से बीजेपी को राज्य में काफी फायदा पहुंचाया था
,
लेकिन उनके मुख्यमंत्री रहते सीएनटी
-
एसपीटी एक्ट संशोधन
,
भूमि अधिग्रहण बिल समेत कई अन्य मामलों को आदिवासी समुदाय में बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई
.
बीजेपी ने उन्हें फ़िलहाल राज्यपाल बनाकर ओड़िशा भेज दिया है
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झारखंड की राजनीति में फ़िलहाल उनका कोई प्रभाव नजर नहीं आ रहा है
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बीजेपी अब ग़ैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का जोखिम नहीं उठाना चाहती है
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इसलिए इस विधानसभा चुनाव में रघुवर का झारखंड की राजनीति में लौटना मुश्किल है
. हालांकि अनुसूचित जाति के किसी बड़े नेता को मुख्यमंत्री कैंडिडेट बनाया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो इसमें पहला नाम नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी का होगा.
हेमंत को विक्टिम कार्ड से चुनौती दे सकते हैं चंपई
जमीन घोटाला मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झामुमो के लिए राज्य में स्थितियां उसके अनुकूल हो गई है
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झामुमो आदिवासी जनता के बीच यह संदेश देने में कामयाब हो चुकी है कि हेमंत सोरेन को झूठे केस में जेल भेजा गया था और यह सब बीजेपी के इशारे पर हुआ है
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इधर चुनाव से पहले हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना के जरिये महिला वोटरों को साध लिया है
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अब बीजेपी को हेमंत सोरेन को चुनौती देने के लिए एक ऐसा आदिवासी चेहरा चाहिए जिसे विक्टिम की तरह पेश कर सहानुभूति वोट जुटाया जा सके
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चंपई सोरेन इसके लिए परफेक्ट हैं
.
वह झामुमो के पुराने लीडर हैं और यह जानते हैं कि झामुमो में कहां चोट करने से बीजेपी को कितना फायदा होगा
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बीजेपी चंपई सोरेन को आगे कर कोल्हान और संथाल परगना की विधानसभा सीटों को अपनी झोली में करने के लिए हर हथकंडे अपनायेगी
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पिछले विधानसभा चुनाव में कोल्हान की सभी
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विधानसभा सीटों से बीजेपी साफ हो गई थी
.
इसलिए बीजेपी यह कोशिश करेगी कि चंपई के जरिये कम से कम कोल्हान की खोई हुई कुछ सीटें वापस आ जाए
.
झामुमो का संथाली वोटबैंक तोड़ सकते हैं चंपई
2019
के विधानसभा चुनावों में झामुमो
-
कांग्रेस और राजद गठबंधन राज्य की
81
में से
47
विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब हुआ था
.
बीजेपी को सिर्फ
25
सीटें मिली थीं
.
झारखंड की
28
अदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटें ही बीजेपी जीत पाई थी
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राज्य में आदिवासियों की आबादी करीब
26
फीसदी है
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चंपई सोरेन के आने से पहले बीजेपी के पास जो आदिवासी नेता मौजूद थे इस बड़ी आबादी पर सेंधमारी करने में नाकामयाब रहे
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चंपई सोरेन संथाल जनजाति से आते हैं
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कोल्हान और संथाल परगना में संथाल जनजाति की आबादी काफी है
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हेमंत सोरेन भी संथाल जनजाति से आते हैं
.
इसलिए झामुमो के संथाली वोटबैंक को तोड़ने में चंपई सोरेन अहम भूमिका अदा सकते हैं
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