रांची
:
कॉमरेड सीताराम येचुरी के निधन के साथ ही मार्क्सवादी आंदोलन का एक और सितारा टूट गया. येचुरी उन नेताओं में थे जिन्होंने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन का उभार और उसकी ढलान दोनों देखी. ऑल इंडिया टॉपर से सियासत की बाजीगरी में अव्वल. छात्र राजनीति से देश का सबसे बड़ा लेफ्ट चेहरा बनने के पीछे उन्होंने कम संघर्ष नहीं किया. 80 के दशक में सीपीएम की केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बनने के बाद येचुरी लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गये. देश में 5 दशक तक वामपंथ की धुरी रहे.
येचुरी ने
सीपीएम
का नेतृत्व ऐसे वक्त में किया जब इसका भारतीय राजनीति में वर्चस्व कम हुआ था. वे कहते थे कि सीपीएम का संसद और विधानसभा में भले ही प्रतिनिधित्व कम हुआ हो
,
लेकिन देश का एजेंडा तय करने में अभी भी सीपीएम का अहम रोल है.
तमिलनाडु से कैसे पहुंचे वामपंथ के गढ़
सीताराम येचुरी का जन्म
12
अगस्त
1952
को तत्कालीन मद्रास में एक तेलुगु ब्रह्माण परिवार में हुआ था. पिता एसएस येचुरी परिवहन विभाग में इंजीनियर थे और मां कलपक्म येचुरी सरकारी अउसर थीं. येचुरी की शुरुआती पढ़ाई हैदराबाद में हुई.
1969
में वे दिल्ली आ गए और वहां प्रेंजीडेंट्स इस्टेट स्कूल में दाखिला लिया. स्टूडेंट लाइफ में येचुरी टॉपर रहे. हायर सेकंड्री की परीक्षा में वह पूरे भारत में टॉप पर रहे.
इसके बाद नई दिल्ली के सेंट स्‍टीफन कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) किया.
1975
में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अर्थशास्‍त्र में प्रथम श्रेणी के साथ एमए की पढ़ाई पूरी की. एमए करने के बाद जेएनयू में ही पीएचडी करने लगे. ये
1975
का दौर था. इसी दौरान देश में इमरजेंसी लग गई. तब येचुरी भी गिरफ्तार हुए थे और उनकी पढ़ाई बीच में ही रूक गई थी.
उन्हों
ने बीबीसी की पत्रकार सीमा चिश्ती से शादी की थी. ये उनकी दूसरी शादी थी. येचुरी की पहली शादी वामपंथी कार्यकर्ता और नारीवादी डॉ. वीना मजूमदार की बेटी से हुई थी. इस शादी से उन्हें एक बेटा और बेटी है.
1977-78
में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने
कॉलेज के दौरान येचुरी वामपंथी विचारों से प्रभावित हुए.
1974
में स्टूडेंड फेडरेशन ऑफ इंडिया से जुड़ गए. एक साल बाद सीपीएम से जुड़े.
1977-78
में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने. इस दौरान इस विश्वविद्यालय कैंपस में लेफ्ट की विचारधारा को पूरा फलने-फूलने का मौका मिला. देश में वामपंथ के दूसरे बड़े नाम में शुमार प्रकाश करात की मदद से उन्होंने जेएनयू को वामपंथी विचारों के अध्ययन और प्रतिपादन का बड़ा केंद्र बनाया.
1978
में येचुरी स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के ऑल इंडिया संयुक्त सचिव बने. बाद में इसके अध्यक्ष भी बने.
1984
में येचुरी को सीपीआई(एम) की केंद्रीय समिति के लिए आमंत्रित किया गया. उन्होंने
1986
में एसएफआई छोड़ दी. इसके बाद येचुरी अपनी सांगठनिक क्षमता और कार्य कुशलता के दम पर पार्टी में कामयाबी की सीढ़ियां लगातार चढ़ते गए.
1992 में पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए
1992
में सीपीएम की चौदहवीं कांग्रेस में येचुरी पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए.
19
अप्रैल
2015
को विशाखापत्तनम में पार्टी की
21
वीं कांग्रेस में सीताराम येचुरी पार्टी के पांचवें महासचिव चुने गए. येचुरी ने पार्टी की कमान प्रकाश करात से संभाली जो लगातार तीन बार (
2005-15)
तक पार्टी के महासचिव रह चुके थे.
18
अप्रैल
2018
को पार्टी को सीपीएम की
22
वीं कांग्रेस में सीताराम युचुरी एक बार फिर से पार्टी के महासचिव बने.
येचुरी संसद के उच्च सदन में अपनी वाक क्षमता और तथ्यात्मक भाषण शैली विरोधियों को भी कायल करते रहे.
2005
में वह पहली बार पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के सदस्य बने. जुलाई
2008
में जब मनमोहन सरकार के कार्यकाल में भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता हुआ
,
उस दौरान सीताराम येचुरी चर्चा में रहे. मनमोहन सिंह इस डील को लेकर सीपीएम की कई शर्तें मानने को तैयार हो गए
,
लेकिन तत्कालीन सीपीएम महासचिव प्रकाश करात मानने को तैयार नहीं हुए.
8
जुलाई
2008
को प्रकाश करात ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी.
राजनेता के साथ अर्थाशास्त्री, पत्रकार और लेखक भी थे
येचुरी राजनेता के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता
,
अर्थशास्त्री और पत्रकार और लेखक भी थे. राजनीतिक दस्तावेज तैयार करने में उनकी राय सर्वोपरि मानी जाती है. कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम के साथ मिलकर उन्होंने
1996
में यूनाइटेड फ्रंट गवर्नमेंट के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार किया था. वे लंबे समय से अखबारों में स्तंभ लिखते रहे थे. उन्होंने कई पुस्‍तकें भी लिखीं
,
जिनमें
'
लेफ्ट हैंड ड्राइव
', '
यह हिन्‍दू राष्‍ट्र क्‍या है
', '
घृणा की राजनीति
' (
हिन्दी में)
, '21
वीं सदी का समाजवाद
'
जैसी किताबें शामिल हैं.



