कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और CPP चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने वीडियो संदेश जारी कर केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के नए स्वरूप VB–G Ram-G रोजगार मॉडल लाने पर तीखा विरोध जताया है. उनका कहना है कि सरकार ने न सिर्फ महात्मा गांधी का नाम बदल दिया बल्कि ग्रामीण रोजगार योजना की आत्मा ही बदल दी है. सोनिया गांधी के अनुसार इस कदम से गरीबों, श्रमिकों और ग्रामीण समुदाय की आजीविका पर सीधा प्रहार हुआ है. सोनिया ने आरोप लगाया कि सरकार ने यह फैसला बिना किसी सार्वजनिक विमर्श, बिना विशेषज्ञ सलाह और विपक्ष को विश्वास में लिए बिना लागू कर दिया. उन्होंने इसे “मनरेगा पर बुलडोजर चलाना” बताया और कहा कि अब रोजगार का निर्धारण दिल्ली में बैठे अफसर करेंगे, जबकि योजना की ताकत स्थानीय पंचायतों और गांवों में थी.
20 साल पुरानी क्रांति को पलटने की कोशिश
सोनिया गांधी ने याद दिलाया कि 2000 के दशक में जब यूपीए सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम पास कराया था, तब संसद में व्यापक सहमति बनी थी. सोनिया गांधी के मुताबिक यह कानून ग्रामीण मजदूरों के लिए कानूनी रोजगार अधिकार देने का पहला बड़ा मॉडल था. उन्होंने कहा कि मनरेगा की वजह से देश के करोड़ों परिवारों को स्थानीय स्तर पर काम मिला, पलायन रुका और गांव की पंचायतों को योजना-क्रियान्वयन में अधिकार मिला. उनका यह भी कहना है कि मनरेगा ने महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को आगे बढ़ाया था.
11 सालों में लगातार कमजोर किया गया कानून
सोनिया गांधी का दावा है कि बीते एक दशक में केंद्र सरकार ने मनरेगा के बजट, अनुमोदन प्रक्रिया और श्रमिक भुगतान में कटौती से इस कानून को कमजोर बनाया. उन्होंने याद दिलाया कि कोविड-19 महामारी के दौरान जब लाखों लोग गांव लौटे, तब एकमात्र सहारा यही योजना थी. फिर भी, उनके मुताबिक, सरकार ने वर्षों से लगातार ऐसी नीति अपनाई जिससे ग्रामीण मजदूरों के लिए मनरेगा की पहुंच और भुगतान चक्र प्रभावित हुआ. अब जब नाम और स्वरूप बदल दिया गया है, तो कांग्रेस इसे “गरीब विरोधी फैसला” बता रही है.
नाम बदलने पर विशेष आपत्ति—किसकी मंशा?
गांधी ने सबसे तीखा सवाल महात्मा गांधी का नाम हटाए जाने पर किया. उनके अनुसार मनरेगा सिर्फ राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि रोजगार सुरक्षा से जुड़ा संवैधानिक वादा था. उन्होंने कहा कि अब यह स्पष्ट नहीं है कि किस वर्ग को काम मिलेगा, कितने दिन का रोजगार होगा और मजदूरी का निर्धारण किस आधार पर होगा. सोनिया ने आरोप लगाया कि सरकार ने भूमिहीन ग्रामीण, दलित, आदिवासी और गरीब परिवारों के रोजगार पर वार किया है. सोनिया गांधी ने कहा कि मनरेगा को लागू कराने में कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण थी, लेकिन यह किसी दल का अभियान नहीं था. उनके अनुसार यह देशहित और ग्रामीण विकास का कानून था, इसलिए केंद्र को विपक्ष से संघर्ष की जगह सहमति बनानी चाहिए थी. उन्होंने यह भी कहा कि करोड़ों किसानों और ग्रामीण श्रमिकों पर असर डालने वाले ऐसे संशोधनों को लेकर राजनीतिक संवाद आवश्यक होता है. पर उनका आरोप है कि सरकार ने इसे एकतरफा निर्णय की तरह लागू किया.
सोनिया ने ‘काला कानून’ कहा
सोनिया गांधी ने अपने संदेश में स्पष्ट किया कि पार्टी इस बदलाव का विरोध करने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि जिस तरह 20 साल पहले उन्होंने ग्रामीण परिवारों के रोजगार अधिकार की लड़ाई लड़ी थी, उसी तरह यह नया संघर्ष भी मजदूरों के साथ खड़े होकर लड़ा जाएगा. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की कि परिवर्तन को “काला कानून” मानते हुए संगठनात्मक विरोध शुरू करें ताकि ग्रामीण समाज की आवाज संसद और सड़कों पर सुनाई दे.
नए रोजगार मॉडल पर विपक्ष एकजुट?
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब सरकार विकासशील भारत रोजगार योजना को तेजी से लागू करने की तैयारी कर रही है. विपक्ष का आरोप है कि यह कानून स्थानीय प्रतिनिधित्व खत्म करेगा और रोजगार की मांग को “डेटा और ऐप आधारित चयन” में बदल देगा. वहीं भाजपा का तर्क रहा है कि मनरेगा में पहले भ्रष्टाचार, फर्जी कार्ड और बिचौलिया व्यवस्था का बोलबाला था, जिसे नई प्रणाली खत्म करेगी. हालांकि सोनिया के बयान के बाद यह मुद्दा संसद की बहस और राज्य राजनीति का बड़ा विषय बन सकता है. कांग्रेस नेतृत्व ने साफ कर दिया कि वे इस बदलाव को केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि गरीबों के संवैधानिक अधिकार पर हमला मानते हैं. आने वाले महीनों में यह मुद्दा ग्रामीण इलाकों में चुनावी विमर्श भी बन सकता है—जहां मनरेगा ने वर्षों तक आर्थिक सुरक्षा दी है.



