Ranchi: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार पर कोल्हान क्षेत्र में आदिवासी किसानों की जमीन जबरन छीने जाने का गंभीर आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि सरकार औद्योगिक हितों के लिए शेड्यूल एरिया की जमीन को नजरअंदाज कर रही है, जिससे आदिवासी समुदाय की आजीविका और सामाजिक अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है.
चंपाई सोरेन के अनुसार, झारखंड कैबिनेट ने 24 सितंबर को हुई बैठक में पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड के उदाजो क्षेत्र की 271.92 एकड़ भूमि हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड को वनारोपण के लिए स्थायी रूप से आवंटित की. इसके बाद 23 दिसंबर को हुई कैबिनेट बैठक में हिंडाल्को को अतिरिक्त 559 एकड़ जमीन दी गई. इसमें नोवामुंडी के मौजा बोकना की 216.78 एकड़, जेटेया, डूमरजोवा और बम्बासाई की 284.89 एकड़ तथा टोंटो प्रखंड के नीमडीह की 57.50 एकड़ भूमि शामिल है.
सरकार की ओर से कहा गया है कि यह जमीन पलामू प्रमंडल के चकला कोल ब्लॉक में उपयोग की गई वन भूमि के बदले में गैर-वन भूमि के रूप में दी गई है, ताकि वहां वनारोपण किया जा सके. इस पर सवाल उठाते हुए चंपाई सोरेन ने कहा कि यदि कोयला खनन से पर्यावरणीय नुकसान पलामू में हुआ है, तो उसकी भरपाई वहीं क्यों नहीं की जा रही. उन्होंने आरोप लगाया कि आदिवासी क्षेत्र होने के कारण कोल्हान की जमीन को आसानी से छीना जा रहा है.
चंपाई सोरेन ने बताया कि प्रभावित गांवों के लोगों का कहना है कि जिस जमीन पर कंपनी पेड़ लगाने की तैयारी कर रही है, वहां वे वर्षों से खेती करते आ रहे हैं और अपने मवेशियों को चराते हैं. यदि यह जमीन उनसे ली जाती है तो उनकी आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा. चंपाई सोरेन ने सवाल किया कि बिना किसी विस्थापन नीति और ग्राम सभा की अनुमति के यह फैसला कैसे लिया गया.
इसके साथ ही उन्होंने सारंडा वन क्षेत्र को वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी घोषित करने के सरकार के फैसले पर भी आपत्ति जताई. चंपाई सोरेन ने कहा कि वन्यजीवों की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन वहां रहने वाले आदिवासियों के पुनर्वास और भविष्य की कोई स्पष्ट योजना सरकार के पास नहीं है.
चंपाई सोरेन ने बताया कि सारंडा वन क्षेत्र में 50 राजस्व गांव और 10 वन गांव स्थित हैं, जहां लगभग 75 हजार से अधिक लोग निवास करते हैं. इसी क्षेत्र में आदिवासियों के सरना स्थल, देशाउली, ससनदिरी और मसना जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल मौजूद हैं, जो उनकी सामाजिक पहचान का आधार हैं. जंगल से मिलने वाला लघु वनोपज और जड़ी-बूटियां आदिवासी समाज की आजीविका का मुख्य साधन हैं.
चंपाई सोरेन ने कहा कि आदिवासी-मूलवासी और आदिम जनजाति समूहों के हितों की अनदेखी कर सारंडा को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करना न तो उचित है और न ही न्यायसंगत. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि झारखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जहां पेसा अधिनियम को कैबिनेट से पास करने के बाद उसका ड्राफ्ट सार्वजनिक नहीं किया गया. उन्होंने सवाल उठाया कि जब जनप्रतिनिधियों और मीडिया तक को अधिनियम की प्रति नहीं मिली, तो सरकार आखिर क्या छिपाना चाहती है.




