लक्ष्मण टुडू ने कर दिया सरेंडर, घाटशिला में JMM-BJP के उम्मीदवारों की तस्वीर साफ

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घाटशिला विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशियों को लेकर कोई सस्पेंस बचा नहीं है. यह लगभग तय हो चुका है कि रामदास सोरेन के बड़े पुत्र सोमेश चंद्र सोरेन जेएमएम से चुनाव लड़ेंगे, वहीं बीजेपी से पूर्व सीएम चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन ताल ठोकेंगे. एक शख्स है जो घाटशिला उपचुनाव के खेल को रोमांचक बना सकता था, लेकिन उन्होंने भी सरेंडर कर दिया है. जी हां बात हो रही है 2014 में घाटशिला सीट से बीजेपी की टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बनने वाले लक्ष्मण टुडू की. लक्ष्मण फिलहाल जेएमएम में हैं, लेकिन उन्होंने साफ कह दिया है कि टिकट की दावेदारी नहीं करेंगे. पार्टी का फैसला सर्वोपरी है. पार्टी जो फैसला लेगी उसके साथ रहेंगे. बीजेपी में वापसी के सवाल को भी उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया है. तो इस तरह सभी अटकलों पर फिलहाल विराम लग गया है.

कई दिनों से सियासी गलियारे में चर्चा चल रही थी कि रामदास सोरेन के परिवार से अगर किसी को टिकट मिला तो विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी छोड़कर जेएमएम में शामिल हुए लक्ष्मण टुडू बगावत कर बीजेपी में वापसी कर सकते हैं. इस चर्चा के पीछे ठोस वजह भी थी. लक्ष्मण टुडू वो शख्स हैं जिन्होंने घाटशिला विधानसभा सीट पर 2014 में पहली बार बीजेपी का खाता खोलवाया था, लेकिन इसके बाद उन्हें पार्टी ने दोबारा घाटशिला से टिकट नहीं दिया. 2019 में तात्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने लक्ष्मण टुडू का टिकट काटकर लखन मार्डी को दे दिया, लेकिन लखन मार्डी चुनाव हार गये. 2019 के बाद रघुवर का प्रभाव बीजेपी में कम हुआ तो लक्ष्मण को उम्मीद जगी कि 2024 में उनका टिकट कन्फर्म है, लेकिन ठीक चुनाव से पहले चंपई सोरेन बीजेपी में आ गये और साथ में ले आये अपने बेटे बाबूलाल सोरेन को. दिल्ली में केंद्रीय मंत्री अमित शाह से बातचीत हुई. सरायकेला सीट पर चंपई और घाटशिला सीट पर बाबूलाल सोरेन की उम्मीदवारी की शर्त पर पिता-पुत्र बीजेपी में चले आए. चंपई के आते ही लक्ष्मण समझ गये कि घाटशिला से टिकट गया. फिर वे बगावत कर जेएमएम में चले गये, लेकिन जेएमएम ने भी उन्हें घाटशिला से टिकट नहीं दिया. पार्टी ने रामदास सोरेन पर ही भरोसा जताया. कोल्हान की दूसरी सीटों पर भी उन्हें मायूसी ही हाथ लगी. 


लक्ष्मण टुडू पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के बेहद करीबी माने जाते हैं. 2005 और 2009 में वे सरायकेला सीट पर बीजेपी की टिकट से चंपई सोरेन को जबरदस्त टक्कर दे चुके हैं. 2005 में वे सिर्फ 882 वोट से चंपई से चुनाव हारे, जबकि 2009 में हार का अंतर महज दो फीसदी ही था. इसके बाद 2014 में अर्जुन मुंडा उन्हें घाटशिला ले आये. यहां की राजनीति उन्हें रास आ गये और पहली बार यहां से जीतकर खुद विधायक बने और घाटशिला में बीजेपी का भी पहली बार खाता खोलवाया, लेकिन इस बार घाटशिला उपचुनाव में दावेदारी करने से उन्होंने इनकार कर दिया है.

 

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