झारखंड कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अबू बकर सिद्दीख को प्रशासनिक गलियारों में एक ईमानदार, सख़्त लेकिन संवेदनशील अफ़सर के रूप में जाना जाता है. वर्तमान में वे झारखंड सरकार में वन एवं पर्यावरण सचिव के पद पर कार्यरत हैं. केरल के रहने वाले होने के बावजूद उन्होंने झारखंड को केवल कार्यस्थल नहीं, बल्कि कर्मभूमि और घर की तरह अपनाया है. लेकिन अबू बकर सिद्दीक की इस छवि के पीछे एक ऐसी शख़्सियत भी है, जो हमेशा शांत, सादगीपूर्ण और सेवा भाव से भरी रहती है —उनकी पत्नी, जो पेशे से डॉक्टर हैं और झारखंड में रहकर लगातार चिकित्सा सेवा दे रही हैं. जो लोग उन्हें नज़दीक से जानते हैं, वे कहते हैं कि अबू बकर सिद्दीख की ईमानदारी, धैर्य और संवेदनशीलता केवल प्रशासनिक प्रशिक्षण का नतीजा नहीं, बल्कि उस संस्कार और वातावरण का भी परिणाम है जिसमें उनकी पत्नी बराबर की भागीदार हैं.
इस दंपति की इंसानियत उस दिन पूरे देश ने देखी, जब वे बेंगलुरु से झारखंड लौट रहे थे. उड़ान सामान्य थी, लेकिन अचानक एक यात्री के कान से तेज़ ब्लीडिंग शुरू हो गई. विमान के भीतर अफरा-तफरी मच गई, यात्री घबरा गए, क्रू मेंबर्स मदद के लिए इधर-उधर देखने लगे. ऐसे समय में, बिना किसी परिचय, बिना किसी औपचारिकता के, अबू बकर सिद्दीख की पत्नी आगे बढ़ीं और सिर्फ़ इतना कहा —“मैं डॉक्टर हूँ.” न कोई शोर, न कोई दिखावा, न कोई पहचान बताने की ज़रूरत. प्लेन में मौजूद सीमित मेडिकल संसाधनों के बीच उन्होंने पूरी शांति से मरीज का प्राथमिक इलाज किया, स्थिति को संभाला और यात्री को राहत दिलाई. उस पल, वो सिर्फ़ एक डॉक्टर नहीं थीं, वो उस संवेदनशील समाज की प्रतिनिधि थीं जहां ज़रूरत पड़ने पर पद, पहचान और प्रोफाइल पीछे छूट जाती है —और इंसान आगे आ जाता है. पूरे घटनाक्रम के दौरान अबू बकर सिद्दीक भी किसी वरिष्ठ अफ़सर की तरह नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार, सहयोगी और संवेदनशील इंसान की तरह मौजूद रहे.
यही वो मूल्य हैं जो इस दंपति को अलग बनाते हैं. झारखंड सरकार में अबू बकर सिद्दीख का नाम ईमानदार और भरोसेमंद अफ़सरों में गिना जाता है. उनके फैसले सख़्त हो सकते हैं, लेकिन नीयत साफ़ होती है. काम नियम से होता है, लेकिन इंसानियत के साथ. ख़ास बात यह भी है कि केरल से आने के बावजूद अबू बकर सिद्दीख और उनकी पत्नी ने हिंदी भाषा पर मजबूत पकड़ बनाई है. उनका मानना है —“लोगों की सेवा तभी संभव है, जब उनकी भाषा और भावना समझी जाए.”



