नई दिल्ली :
देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए वन नेशन, वन इलेक्शन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया. इस बिल को लोकसभा ने 269 वोट से स्वीकार किया, जबकि विपक्ष में 198 वोट पड़े. विपक्ष ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने प्रस्ताव दिया है कि विधेयक को जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के पास भेजा जाना चाहिए. केंद्रीय कैबिनेट ने 12 दिसंबर को इस बिल को मंजूरी दी थी.
कोविंद कमेटी कि सिफारिशों पर बना है बिल
वन नेशन, वन इलेक्शन बिल को चुनाव सुधार की दिशा में बड़ा कदम बताते हुए मोदी सरकार ने 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक हाईलेवल कमेटी बनाई थी. देश के 47 राजनीतिक दलों ने वन नेशन, वन इलेक्शन पर अपने विचार दिये थे. इनमें से 32 दलों ने लोकसभा और राज्यसभा चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया था. कमेटी ने वन, नेशन वन इलेक्शन की संभावनाएं तलाशते हुए मार्च 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. समिति ने 191 दिनों की रिसर्च के बाद 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी. फिर सितंबर 2024 में केंद्रीय कैबिनेट ने समिति की की सिफारिशों को अपनी मंजूरी दे दी.
समिति के सुझाव
चुनाव कराने की योजना दो चरणों में लागू की जाए
पहले चरण में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव हों
दूसरे चरण में आम चुनाव के 100 दिन के अंदर पंचायत और नगर निकायों के चुनाव हों.
सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का इस्तेमाल किया जाए.
चुनाव प्रणाली में बदलाव को लागू करने के लिए एक खास टीम बनाई जाए.
1951 से 1967 तक लोस-विस के चुनाव होते थे साथ
वन नेशन, वन इलेक्शन भारत के लिए नया चीज नहीं है. वर्ष 1951 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाते थे. आजाद भारत में पहली बार 1951-52 में आम चुनाव हुए थे. लोकसभा के साथ 22 राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी कराए गए थे. करीब 6 महीने तक चुनाव की प्रक्रिया चली थी. पहले आम चुनाव में 489 लोकसभा सीटों के लिए 17 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाला था. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे. हालांकि, उस दौरान कुछ राज्यों में अलग से चुनाव कराए गए थे. 1955 में आंध्र राष्ट्रम (आंध्र प्रदेश), 1960-65 में केरल और 1961 में ओडिशा में अलग से विधानसभा चुनाव हुए थे.
1983 से वन नेशन, वन इलेक्शन की सिफारिशें
1972 में लोकसभा चुनाव समय से पहले कराए गए, जिससे लोकसभा और विधानसभा चुनावों का चक्र अलग हो गया. 1983 में भारतीय चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार को दिया था. फिर 1999 में विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि हर पांच साल में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं. फिर 2015 में संसदीय समिति की 79वीं रिपोर्ट में चुनाव एक साथ कराने के लिए इसे दो चरणों में करने का तरीका बताया गया. 2023 में कोविंद कमेटी बनी और उसने राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों से वन नेशन, वन इलेक्शन पर सुझाव लिया.



