सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा का फिर से नाम बदला जाएगा. पहले यह नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम) था. 2009 में इसका नाम बदलकर मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) किया गया और फिर से नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना किया जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक सरकार मनरेगा का नाम बदलने की तैयारी कर रही है. हालांकि अभी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है.
तीन बड़े फैसलों को कैबिनेट से मंजूरी मिलने की संभावना
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय कैबिनेट से तीन बड़े और महत्वपूर्ण फैसलों को मंजूरी मिलने की संभावना है. इनमें मनरेगा का नाम बदलने का भी फैसला शामिल. बताया जा रहा है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने यह प्रस्ताव तैयार किया है, जो महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज दर्शन को मजबूत करने का प्रयास है. यह बदलाव कैबिनेट में मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, लेकिन योजना का मूल ढांचा – ग्रामीण परिवारों को सालाना 100 दिन की गारंटी मजदूरी में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं होगा. इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा विधेयक और उच्च शिक्षा विधेयक को भी कैबिनेट की मंजूरी मिलने की उम्मीद है.
क्या है मनरेगा स्कीम
2005 में यूपीए सरकार ने नरेगा शुरू किया था. इसे भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. यह 25 करोड़ से ज्यादा परिवारों को आजीविका सुरक्षा देती है, बेरोजगारी कम करती है और स्थायी संपत्तियां (सड़कें, तालाब, वनरोपण) बनाती है. 2025-26 के बजट में इसके लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित हैं, जो पिछले वर्ष से 10% अधिक है. इसका मकसद 'काम करने के अधिकार' की गारंटी देना है. यह स्कीम एक फ्लैगशिप प्रोग्राम है, जिसका मकसद ग्रामीण परिवारों की रोजी-रोटी की सिक्योरिटी को बेहतर बनाना है. इसके लिए हर उस घर को एक फाइनेंशियल ईयर में कम से कम 100 दिन की गारंटी वाली नौकरी दी जाती है, जिसके बड़े सदस्य अपनी मर्ज़ी से अनस्किल्ड मैनुअल लेबर करते हैं. मनरेगा दुनिया के सबसे बड़े वर्क गारंटी प्रोग्राम में से एक है. 2022-23 तक मनरेगा के तहत 15.4 करोड़ एक्टिव वर्कर हैं.




