बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 15 दिसंबर को आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र सौंपने के दौरान एक मुस्लिम महिला डॉक्टर का हिजाब हटाने की घटना ने राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. यह मामला सिर्फ भारतीय मीडिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया, विशेष रूप से मुस्लिम बहुल देशों में भी चर्चा का विषय बन गया है. तुर्की, क़तर और पाकिस्तान समेत कई देशों के मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इस घटना की आलोचना की गई.
पाकिस्तान के सोशल मीडिया और मीडिया रिपोर्ट्स में यह टिप्पणी की गई कि “भारत में मुसलमान होना आसान नहीं है.” करीब दो दशकों से बिहार के मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार की पहचान एक संतुलित और धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर रही है, ऐसे में इस व्यवहार को उनकी राजनीतिक छवि से मेल नहीं खाने वाला बताया जा रहा है. विपक्षी दलों ने भी इस घटना को लेकर सवाल उठाए हैं और कहा है कि नीतीश कुमार की सेहत और व्यवहार अब किसी बड़े संवैधानिक पद के अनुकूल नहीं दिखते.
जनता दल यूनाइटेड के एक प्रवक्ता ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देने से बचते हुए कहा कि यह विषय उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है. उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के प्रमुख सहयोगी हैं. इससे पहले जून 2022 में बीजेपी नेता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी के बाद पश्चिम एशिया में भारत को तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा था.
अरब मीडिया की प्रतिक्रिया भी कड़ी रही. अल जज़ीरा की अरबी वेबसाइट ने इस घटना को प्रमुखता से प्रकाशित करते हुए लिखा कि इससे भारत में मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव की बहस फिर सामने आई है. मिडिल ईस्ट इवेंट्स नामक मीडिया संस्थान ने भी वीडियो साझा कर भारत में मुस्लिम आबादी की स्थिति पर सवाल उठाए.
भारत के पूर्व राजदूत तलमीज़ अहमद का कहना है कि भारत की बहुसांस्कृतिक और उदार लोकतंत्र की छवि पिछले एक दशक में कमजोर हुई है. उनके अनुसार, आंतरिक घटनाओं का मनोवैज्ञानिक असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पड़ता है, खासकर तब जब भारत के पश्चिम एशिया के साथ गहरे आर्थिक और कूटनीतिक संबंध हों.



