पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी अमान्य: झारखंड हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला - “स्पेशल मैरिज एक्ट धार्मिक कानूनों से ऊपर”

The verdict in Malegaon blast case came after 17 years, all 7 accused including Sadhvi Pragya Thakur were acquitted, BJP said Congress should answer saffron terrorism (9)-e8euZJtxFY.jpg

Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह करने वाला व्यक्ति किसी भी धार्मिक या व्यक्तिगत कानून का हवाला देकर दूसरी शादी नहीं कर सकता. यह फैसला धनबाद के पैथॉलॉजिस्ट डॉ. मोहम्मद अकील आलम के मामले में सुनाया गया, जिन्होंने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी की थी.

अकील आलम ने 4 अगस्त 2015 को स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत विवाह किया था. कुछ समय बाद उनकी पत्नी घर छोड़कर देवघर चली गईं. अकील का कहना था कि पत्नी बिना कारण घर छोड़कर चली गईं और कई बार बुलाने के बावजूद वापस नहीं लौटीं. इस पर उन्होंने देवघर फैमिली कोर्ट में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की.

सुनवाई के दौरान पत्नी ने अदालत में बताया कि अकील पहले से शादीशुदा हैं और उनकी पहली पत्नी से दो बेटियाँ भी हैं. उसने यह भी आरोप लगाया कि अकील ने उसके पिता पर संपत्ति अपने नाम करने का दबाव बनाया और इनकार करने पर उसके साथ मारपीट की गई. अदालत की कार्यवाही के दौरान अकील ने स्वयं स्वीकार किया कि उनकी पहली पत्नी जीवित हैं, और यह तथ्य विवाह के समय छिपाया गया था.

देवघर फैमिली कोर्ट ने दूसरी शादी को अवैध घोषित किया. इसके खिलाफ अकील ने झारखंड हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट का निर्णय बरकरार रखा.

अदालत ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4(ए) के अनुसार, कोई भी विवाह तभी वैध माना जाएगा जब पति या पत्नी में से कोई पहले से जीवित जीवनसाथी न रखता हो. अदालत ने यह भी कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट एक “नॉन ऑब्स्टांटे क्लॉज” के तहत बना कानून है, जो किसी भी निजी या धार्मिक कानून से ऊपर है.

इस फैसले को समान नागरिक अधिकारों और एकरूप विवाह कानून की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

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