Ranchi: झारखंड के साहिबगंज, चतरा और पलामू जिलों में खनन पट्टा आवंटन में गंभीर गड़बड़ियां उजागर हुई हैं. यहां डीसी ने अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक 4.74 हेक्टेयर भूमि पर पट्टा स्वीकृत कर दिया, जिसे ई-नीलामी के लिए जाना चाहिए था. उधर चतरा और पलामू में तो वन भूमि को गैर-मजरुआ परती दिखाकर आठ पट्टे दे दिए गए. वन संरक्षण अधिनियम 1980 के उल्लंघन के इन मामलों का खुलासा सीएजी की रिपोर्ट में हुई है. रांची में प्रधान महालेखाकार इन्दु अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इन गड़बड़ियों को उजागर किया.
सिर्फ 3.77% ब्लॉकों की नीलामी
CAG की इस रिपोर्ट के मुताबिक बालू घाटों के संचालन, पत्थर खदानों के पट्टों की स्वीकृति और नीलामी में भारी गड़बड़ियां हुईं, जिससे राज्य को करोड़ो रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक कई खनन पट्टे वन भूमि पर अवैध तरीके से दिए गए, जबकि नीलामी प्रक्रिया बेहद धीमी रही और सिर्फ 3.77% ब्लॉकों की नीलामी हो सकी. राजस्व 2017-18 के 1,082 करोड़ से घटकर 2021-22 में 697 करोड़ रह गया.
बालू घाट संचालन में गड़बड़ी
बालू घाट संचालन में भी बड़ी गड़बड़ी का खुलासा हुआ है. झारखंड में बालू घाटों के संचालन को लेकर भी CAG की रिपोर्ट ने बड़ा खुलासा किया है. झारखंड राज्य खनिज विकास निगम (JSMDC) को सौंपे गए 608 बालू घाटों में से केवल 21 का ही संचालन किया जा सका. इससे 70.92 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है. वहीं यह भी खुलासा हुआ है कि माइनिंग प्लान और पर्यावरणीय स्वीकृतियों में देरी के कारण 9,782 एकड़ क्षेत्र के 368 घाट वर्षों तक बंद पड़े रहे. वहीं 2019 से 2022 के दौरान बालू से संबंधित स्वामित्व राशि में 82 लाख से 7.61 करोड़ तक की विसंगतियां भी पाई गईं.
अतिरिक्त खनन पर जुर्माना नहीं लगा
अवैध खनन पर प्रशासनिक ढिलाई का भी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है. चार जिलों के 26 पट्टाधारियों ने तय सीमा से 33.21 लाख घनमीटर अधिक लघु खनिजों का खनन किया, जिसका जुर्माना 205.21 करोड़ बनता था, लेकिन जिला खनन कार्यालयों ने न तो जुर्माना लगाया और न ही वसूली की. इसी तरह 30 मामलों में 27.53 करोड़ तथा 15 मामलों में 2.23 करोड़ की वसूली नहीं की गई.



